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गुल मकई मूवी रिव्यू: सिर्फ़ मुद्दा गरम, बाकी सब कुछ नरम
पाकिस्तान की नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई (malala) की ज़िंदगी पर आधारित फिल्म गुल मकई रिलीज़ के दो दिन पहले विवादित पोस्टर के कारण ज़्यादा चर्चा मे आई।

सिनेमा – गुल मकई
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सिनेमा प्रकार – बायोग्राफिकल ड्रामा
अदाकार – रिम शेख, अतुल कुलकर्णी, दिव्य दत्ता, मुकेश ऋषि, ओम पूरी
निर्देशक – अमजद खान
अवधि – 2 घंटे 10 मिनट
प्रस्तावना
पाकिस्तान की नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई (malala) की ज़िंदगी पर आधारित फिल्म गुल मकई रिलीज़ के दो दिन पहले विवादित पोस्टर के कारण ज़्यादा चर्चा मे आई। मुधा बेहद अच्छा है लेकिन क्या ये फिल्म भी उतनी ही अच्छी है ? आइये जानते हैं।
कहानी
पाकिस्तान को धीरे धीरे अपने काबू मे ले रहे तालिबानी संगठन की क्रूरता से फिल्म की शुरुआत होती है। इस संगठन का लीडर होता है, मुकेश ऋषि (मौलाना फजलूल्लाह) तालिबानी पूरे पाकिस्तान मे आतंक मचाते हैं। नाच गाने के अलावा ये महिलाओं के घर से बाहर निकलने और पढ़ने पर पाबंदी लगाते हैं। जिसके खिलाफ आवाज़ उठाती है छात्रा मलाला (रिम शेख)। मलाला के पता युसुफ़ज़ई (अतुल कुलकर्णी) भी इस काम मे उसका साथ देते हैं। लेकिन अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए मलाला को भारी खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।
मलाला कैसे तालिबानियों का विरोध करती हैं। उन्हें किन किन चुनौतियों से गुज़रना पड़ता है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
अदाकारी
अतुल कुलकर्णी, दिव्या दत्ता और रिम शेख ने अच्छी अदाकारी की है। इनके अलावा मुकेश ऋषि को छोड़ दे तो कोई और ज़्यादा प्रभावित नहीं करता। स्वर्गीय ओम पूरी की झलक दिल को भाति है। हालांकि उनका कुछ ज़्यादा नहीं है।
निर्देशन और छायांकन
अमजद खान ने फिल्म का निर्देशन किया है। जो बेहद खराब है। एक अच्छे मुद्दे को उन्होने बहुत खराब तरह से पेश किया है। छायांकन भी कुछ खास नहीं है।
संगीत
फिल्म का सगीत लुभाता नहीं है। बैकग्राउंड स्कोर कमजोर है।
खास बातें
मुद्दा बहुत अच्छा है।
अतुल कुलकर्णी, रिम शेख, दिव्य दत्ता की अदाकारी।
कमजोर कड़ियाँ
स्क्रीनप्ले बेहद खराब ।
निर्देशन हास्यास्पद।
संवाद बेहद कमज़ोर।
मुद्दे से भटकती है।
आखिर तक देख पाना असंभव सा लगने लगता है।
देखें या ना देखें
ये फिल्म मुद्दे से भटकती है और बहुत उबाती है। आप इसे ना देखें तो ही बेहतर है।
रेटिंग – 1/5
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